Thursday, September 11, 2008

आम आदमी -एक मानसिकता

Posted by Rebellious Indians

"एक आम आदमी" बहुतेरे भारतीयो का परिचय इसी ब्रह्मवाक्य से होता है।यह आम आदमी आम है क्योकि उसे अपने आम होने से घृणा है और खास होने से प्यार ।मै अभी अपनी नयी टेबल पर बैठकर जब आम आदमी के उपर लिखकर कागज रंगने की कोशीश कर रहा हु तब भी आम से खास बनने की यह भावना ही बलवती है और जब आम आदमीयो के बीच बैठा एक आम आदमी चीखकर कहता है कि वह एक आम आदमी है तब भी वह प्रयास कर रहा है खास होने के ,बस यह थोडा छोटा प्रयास है और कूछ नही ।

अपनी छोटी-छोटी उपलब्धी को बडा दिखाने और बडी-बडी अशक्तता को छोटा दिखाने मे यह चश्मा बडा कारगर सिद्ध होता है मसलन- "मै एक आम आदमी हु मैने हाकरी करके पढाई की अब प्रोफ़ेसर हो गया हुँ अब मेरी तारीफ़ होनी ही चाहिये"या "मै जानता हु रिश्वत देना अच्छा नही पर देता हु आम आदमी कर भी क्या सकता है"इत्यादि।

आम आदमी आम दिखता है पर अंगुर दिखना चाहता है ,अंगुर भी कोई नही आम आदमी का ही एक गुच्छा है जो सत्ता के गलियारे से होता हुआ राजनितीज्ञ,उद्योगपति,शिक्षाविद इत्यादि के लेबल अपने खीसे मे भरकर दिल्ली मे जा बैठा है । आम को अंगुर होने की हडबडी है पर यह नेति-नेति जैसा पेचीदा रास्ता है।इसके लिये चमचागिरी की तपस्या ,शब्दो की लफ़्फ़ाजी और बैंक बेलेंस की हरियाली वगैरह आवश्यक है ।आम आदमी वगैरह का इंतजाम तो भली-भांती कर लेता है पर बाकी औजारो का क्या? उसके पास ये औजार नही है इसिलिये तो वह आम आदमी है ,तब अंगुर दुर होने लगते है और अंगुर होने की संभावना भी विदा मांगने लगती है ।यहा अंगुर दुर हुये नही और वहा आमआदमी उसे खट्टा मान लेता है ।फ़िर शुरु होता है इन खट्टे अंगुरो की आलोचोनाओ का दौर तथा उन आलोचनाओ के फ़ायदे का दौर ।इन आलोचनाओ के शार्टकट रास्ते भी अंगुरो की तरफ़ जाने के मुख्य रास्तो से जुडे होते है यथा यदि आपकी आलोचना से डरकर दिल्ली के किसी अंगुर ने आपसे अपनी सहमती जतायी तो दुसरे दिन आपकी फ़ोटो उसके साथ अखबारो मे चमकने लगेगी और आम से तुरंत अंगुर हो गये।हर्रा लगे ना फ़िटकरी और रंग चोखा ।और यदि वे सहमत ना हुये तो असहमत हो जायेंगे जिसकी संभावना अधिक है और असहमत अंगुर जब आप पर कटाक्ष करे तो भी वह आपको अपनी बराबरी का तो मान ही रहा है, आप तुरंत उसकी बराबरी के हो गये अर्थात आप को भी अंगुर होने की मान्यता मिल गयी ।फ़र्क मात्र इतना ही होगा कि अधिक खट्टे अंगुरो के बीच आप कुछ कम खट्टे नजर आयेंगे ।

विनम्रता आम आदमी का गहना है वह हमेशा झुका हुआ है ,्हमेशा नम्र है ,हमेशा विनीत है जैसे उसकी रीड की हड्डी हो ही नही । अंगुर महंगाई बढायेगा और आम झुक जायेगा ,अंगुर करोडो रुपये डकार जायेगा और आम !आम और झुक जायेगा ।अगर कभी अंगुर आम को देखकर मुस्करा दे आम अब की बारी झुकेगा नही बिछ जायेगा क्योकि आम के पास रीड की हड्डी ही नही है ।रीड की हड्डी तो छोडिये आम आदमी के पास कंधा भी नही इसलिये तो वह अपनी कुछ जिम्मेदारी उठाने को वह तैय्यार नही ।अपना कुछ बोझ पुलिस, कुछ बोझ पत्रकार,कुछ बोझ समाजसेवी और दौलतमंदो तथा बाकी का बोझ दिल्ली के अंगुरो पर डालकर वह मजे से सोता रहता है।

हर चुनाव मे जब अंगुर अपने भाषण और नारो के जाम लेकर आम की बस्ती मे जाता है तो वह अंगुर के चरण पुजने लगता है और भुल जाता है कि यह वक्त चरण पुजने का नही लात मारने का है ।मारो लात और अंगुर को आम करो, सभी को आम करो।

भारत आम लोगो का देश है इसिलिये लडखडा रहा है और इसे टिकने के लिये कंधा चाहिये इसिलिये आम आदमी को अपना कंधा बनाना ही होगा नही तो यह देश लडखडाकर गिर पडेगा आम आदमीयो के उपर ही ।मगर अफ़सोस लाखो आम आदमी अंगुर को आम बनाने की फ़िक्र छोड अंगुरो के पिछे घुम रहे है अंगुर बनने की आश लिये ।


मैने तो अंगुर लिखा है लेकिन यदि आप चाहे तो लंगुर भी पढ सकते है साथ ही समीर यादव जी को धन्यवाद जिनके कारण इस लेख के बीज मेरे मानस मे अंकुरित हुये है।

दीपक शर्मा

3 comments:

Anil Pusadkar said...

deepak ji ab aapko shikayat nahi rahegi.aapka blog blogvani par nazar me nahi aya warna shikayat ka mauka bhi nahi deta,khair aapne aam aur angoor ki jo baat kahi wo solah aane khare hai aam ki agar ridh ki haddi hoti ya wo angoor ke samne letna band kar de to sari samasya hi hal ho jaye,waise aam se bhi halke log hain ber aur makai ki tarah,kya kariyega.accha aur sachha likha aapne,jari rahe yehi raftar aur dhar.

दीपक said...

धन्यवाद अनिल जी !! बेर और मक‍इ की बात आपने सही कही
मेरा प्रणाम स्वीकार करे!

आभार
दीपक

Rebellious Indians said...

जी दीपक जी बेबाक लेखन के लिए धन्यवाद....
आप के लेखन की धार को सलाम .....

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