एक क्रिकेट प्रेमी और भूतपूर्व खिलाड़ी होने के नाते, मुझे खुशी है की हमारा छत्तीसगढ़ भी अब विश्व क्रिकेट में एक अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब होगा... बशर्ते, खिलाड़ियों को पुरी सुविधाएँ मिले और खेल का सही विकास हो, गुणवत्ता का पुरा ध्यान रखा जाए और जितनी जल्दी हो सके 'छत्तीसगढ़ क्रिकेट बोर्ड' का गठन कर उसे 'भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड' से मान्यता दिलाई जाए।

अगर सही तरीके से और हर सम्भव प्रयास कर क्रिकेट को राज्य में सही दिशा देने की कोशिश की जाए और मुलभुत सुविधाएँ प्रदान किया जाए तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे इस छोटे से राज्य से भी 'धोनी', 'पठान', 'रैना' और 'प्रवीण कुमार' जैसे खिलाड़ी हमारे देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। हमारे राज्य में प्रतिभाओं की कमी नही है... जरुरत है तो उन प्रतिभाओं को खोज निकलने और हर सम्भव मदद कर उन्हें मुलभुत सुविधाएं प्रदान करने की। क्रिकेट ही क्यों, अगर सुविधाएं और सही प्लेटफॉर्म मिले तो हमारे राज्य से कई दुसरे और अविकसित एवं अप्रचलित खेलों में भी प्रतिभाएं देश का प्रतिनिधित्व कर नाम रोशन कर सकती है।

चलिए, अब मुद्दे पे आते हैं...
११ सितम्बर, २००८ को राजधानी रायपुर से करीब २४ किमी दूर, ग्राम परसदा में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का उद्घाटन हुआ और शायद, राज्य में क्रिकेट का नया अध्याय शुरू हो गया। अंतरराष्ट्रीय ख्याति वाले कई खिलाड़ियों के कदम पहली बार रायपुर में पड़े। स्टेडियम का उद्घाटन राज्यपाल ईएसएल नरसिंहन ने स्टेडियम के सामने लगे पत्थर से पर्दा हटाकर अनावरण करके किया। मैंने किसी अखबार में पढ़ा: "मुख्यमंत्री ने अपने संक्षिप्त संबोधन में लोगों को स्टेडियम के लिए बधाई दी और कहा कि स्टेडियम को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) से जल्द संबद्धता मिलने की उम्मीद है। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैच हो सकेंगे। खेल मंत्री श्री अग्रवाल ने कहा कि अब कोई यह नहीं कह सकेगा कि राज्य में क्रिकेट के लिए अंतरराष्ट्र्रीय स्तर की सुविधा नहीं है।"

क्या स्टेडियम का निर्माण और बीसीसीआई से संबद्धता ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधा देना है? एक आधे अधूरे स्टेडियम का लोकार्पण करवा देने से ही खेलों का विकास नही हो जाता है। खेलमंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने पत्रकारों को एक सवाल के जवाब में यह कहकर दरकिनार कर दिया कि 'खेलने के लिए सबसे जरुरी मैदान होता है और वह तैयार है' और 'पत्रकार सिर्फ़ सवाल पूछता है, बहस नही करता'।

मैदान का तैयार हो जाना ही सब कुछ है? अभी स्टेडियम में इतना काम बाकी है की उसे पुरा होने में लगभग एक वर्ष का समय लग जाएगा। स्टेडियम में इंटीरियर और फिनिशिंग के साथ साथ पेवेलियन, वी आई पी और मिडिया गैलरी का पुरा काम अभी बाकी है। चित्र में स्टेडियम को ध्यान से देखने से साफ़ ज़ाहिर होता है की सिर्फ़ मैदान और अन्दर में गैलरी को छोड़कर बाकी कुछ भी काम नही हुआ है और स्टेडियम को पुरी तरह से अंतर्राष्ट्रीय खेलों के लिए बीसीसीआई को सुपुर्द करने में आने वाला एक साल भी कम पड़ जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेलों के लिए सिर्फ़ स्टेडियम ही काफ़ी नही है। अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों एवं अधिकारियों के ठहरने की सुविधायों के साथ साथ, आईसीसी और बीसीसीआई के मापदंडों पर खरा उतरना और दर्शको के लिए मुलभुत सुविधायों का ख्याल रखना भी जरुरी है। छत्तीसगढ़ का यह पहला अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम होने के साथ साथ हमारे राज्य से सटे हुए दुसरे राज्यों के दर्शकों के लिए भी यह उतना ही महत्वपूर्ण है।

भाजपा नेताओं का अचानक यह क्रिकेट प्रेम वैसे कुछ संदेहास्पद और अजीब है। अचानक, आनन् फानन में स्टेडियम का उद्घाटन कर देना, वह भी आधे अधूरे स्टेडियम को, मुझे सोचने पे मजबूर कर देता है। स्टेडियम की समूची लागत ९८.४५ करोड़ रुपए है जिसमें से ख़ुद खेलमंत्री के मुताबिक अभी तक 60 करोड़ खर्च हुए हैं, मतलब ३८.४५ करोड़ रुपए का काम अभी बाकी है... आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की अभी स्टेडियम के पुरा होने में कितना वक्त बाकी है।

शायद 'चुनाव आचार संहिता' लागु होने से पहले ही लोकार्पण करने एवं सरकार एवं उसके मंत्रियों द्वारा इसे अपनी उपलब्धि बताने की पीछे भी एक रहस्य छुपा है. शायद भाजपाई मंत्रियों एवं नेताओं को यह डर लगने लगा है की कहीं आने वाले विधानसभा चुनाव में हार का सामना न करना पड़े. बल्कि उन्हें अब यह लगने लगा है की '३ रु. किलो चावल' एवं 'स्व-घोषित विकास', सरकारी तंत्र एवं सरकार द्वारा किये गए अनगिनत भ्रष्टाचार के सामने कमजोर पड़ गए हैं तथा उनकी हार अब सु:निश्चित है.
इसी कारण से एवं इस डर से की कहीं शिलालेख पर "उनकी" जगह, इस अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम के वास्तविक प्रणेता एवं भूतपूर्व मुख्यमंत्री, श्री अजित जोगीजी - जिनकी दूरदर्शिता, रजनीतिक सोच एवं व्यावसायिक समझ ने इस स्टेडियम को जन्म दिया - का नाम अंकित ना हो जाये, इस भ्रष्टाचारी भाजपाई सरकार ने सारी वर्तमान परिस्थितियों को ताक़ में रखते हुए इस स्टेडियम का लोकार्पण कर दिया.
मुझे तो यह लगता है की कहीं यह भ्रष्टाचारी सरकार, आनन्-फानन में इस अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम का नामकरण कर इसका नाम - "पं. दीनदयाल उपाध्याय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम" या फिर "डॉ. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम" ना कर दे...

खैर, देर से ही सही, भाजपाइयों को वास्तविक परिस्थितियों की समझ तो आई!

बहरहाल, हमारे भोले-भाले प्रदेशवासियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम देखने एवं अपने चहेते खिलाडियों से तथा उनके खेल से भविष्य में रूबरू होने का मौका मिलने पर हार्दिक बधाई एवं श्री अजीत जोगीजी को साधुवाद!

- Remmish Gupta

1 comments:

Anonymous said...

यह सरासर मिथ्या है की इस स्टेडियम का जन्म अजित जोगी द्वारा हुआ था. अजित जोगी सरकार ने बुढा तलब के सामने एक स्टेडियम बनाने की बात जरुर की थी जिसको भी वे पूरा नहीं कर पाए थे. इस स्टेडियम की प्लानिंग से लेकर निर्माण तक सभी कार्य वर्त्तमान सरकार ने किये हैं तो शिलालेख कर उनका नाम आने का पूरा हक है. अगर अगले चुनाव मैं कांग्रेस जीत कर आती है (हा हा हा अभी की स्थिथि मैं तो यह सोचना भी असंभव को सोचने की बात है ) और शिलालेख पर जोगी जी का नाम आता है तो यह सरासर इस सरकार के साथ अनायाय होगा और जोगी को झूट मूट का शरेर मिलेगा.
पंडित दीन दयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुख़र्जी बहुत ही महँ स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं और उनके खिलाफ आपके द्वारा इस प्रकार की गयी टिपण्णी अवमानना की श्रेणी मैं आती है और आपके खिलाफ मानहानि एवं राष्ट्रदोह का मुक़दमा चलना चाहिए.

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